chhattisgarhi muhavare | lokoktiyan छत्तीसगढ़ी कहावतें

कभी-कभी किसी बात को कहने के लिए लोगों द्वारा एक प्रकार के छोटे और सटीक शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिसे कहावत कहा जाता है।

 
कहावत एक कैप्सूल की तरह होता है जिस प्रकार कैप्सूल में बहुत सी असरदार चीजें बहुत छोटी जगह में भरी होती है ,ठीक उसी प्रकार कहावत में किसी भी बात को कम से कम शब्दों में कहा जाता है।  ये कहावतें आदि काल से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते आ रहा है।

 

 हमने कुछ कहावतें और उसके अर्थ को बताने का प्रयास कियें हैं, यदि आप लोगों को लगता है कि,किसी भी कहावत का अर्थ  कुछ और हो सकता है तो कमेंट बॉक्स में कमेंट जरूर करें।
नीचे कुछ कहावतों,लोकोक्तियों को अर्थ सहित दिया गया है-
 
1.लबरा के नौ नागर=सफेद झूठ।
 
2.करिया आखर भईस बरोबर=अनपढ़ होना।
 
3.दूसर बर खाँचा खनय खुदय धसका लय=किसी के लिए 
बुरा सोचना।
 
4.काजर के कोठरी म घुसबे त दाग तो लगहिच चे=किसी काम मे शामिल रहना।
 
5.मोरे बिलई मोरे से म्याऊ=बहस करना।
 
6.खुल्ला बदन नहावय त निचोवय का=परिणाम का चिंता न करना।
 
7. सरहा मुड़ नाउ ल दोष=खुद की गलती दूसरे को दोष देना।
8.बनती त बनती नही त खनती= गलती पर परिणाम भुगतना।
 
9.फोकट के पाईस त मरत ले खाइस=फ्री के चीजों का गलत उपयोग।
 
10.दु दिन के पहुना=जल्दी चले जाना।
 
11.उजड़े मड़वा म डीड़वा नाच=काम होने के बाद चुस्ती दिखाना।
 
12.अपन हाथ के खिला टाइट करले चाहे ढीला=स्वयं का नियंत्रण होना।
 
13.अपन हाथ जगन्नाथ= साधन संपन्न ।
 
14.गुड़ गड़ेरी आन खाय टुकना बपुरा मार खाय=फायदा कोई और ले फसे कोई और। 
 
15.आंजत आंजत आखि ल फोर डरीच=गलती होना।
 
16.अपन मरे म सरग दिखथे=आत्मनिर्भर बनना ।
 
17.मरहा ल दु आषाढ़=विपत्ति आना।
 
18.तेली के घर म तेल हे त पहाड़ ल नई फोत डारै=दुरपयोग करना।


19.सौ बार सोनार के त एक बार लोहार के =करारा जवाब देना।
 
10.कथरी ओढ़ के घीव खाना=अंदर ही अंदर फायदा कमाना।
 
11.नही मम से कनवा मम अच्छा=कुछ नही होने से अच्छा है, कुछ तो है।
 
12.महि मांगे जाय अउ ठेकवा ल लुकाय=संकोच करना।
 
13.जादा के मिठास म किरा लगथे=ज्यादा नजदीकी ठीक नही होती है ।
 
14.गरियार बइला=काम चोरी करना।
 
15.घानी कस बइला गोल गोल घूमना=गुमराह होना।

16.अंधरा बर का दिन त का रात=कुछ भी फायदा न होना।


17.हरियर खेती गाभिन गाय जबे खाय तभे पतियाय=पा न लें तब तक यकीन न करना।

18.आखीं वाले अंधरा=जानबूझ कर गलती करना।

19.जरे म नमक छिचई=दुखी को और कष्ट पहुंचना।

20.मरत ल अउ मार डरय= दया न करना।

21.परदेश के जवई त रुख के चढ़ई =देखने मे आसान लगना।

22.भागे मछरी जाँघ कस मोटह= हवा -हवाई बात करना ।

23.अंधरा खोजय दु आँखी=मनचाहा वस्तु प्राप्त होना।

24.अपन आँखी के कचरा ,अपन ले नई हटय =स्वयं में दोष होना। 

25.चट मंगनी पट बिहाव =तत्काल कार्य सम्पन्न करना। 

26.आँखी सही आँखी नहीं ,काजर के खइता =दुरूपयोग करना। 

27. दूसर के आँखीं म नींद नई आवय = दूसरे के कार्य से संतुष्ट न होना। 

28.ओरवाती के पानी बरेंडी नई चढ़य = विपरीत कार्य न होना। 

29.एक ठन आमा ,सौ लबेदा =मांग अधिक होना। 

30.एक हाथ म ताली नई बाजय =एक से काम नहीं होता। 

31.कब बब मरही त ,कब बरा चुरहि =व्यर्थ का आशा बंधाना। 

32.कनवा बेटा राजा बरोबर =प्रिय वस्तु। 

33.का हरदी के रंग ,त का परदेशी के संग =अनजान से ज्यादा लगाव न रखना। 

34. किस्मत जान कपसा फूलय = भाग्यशाली होना । 

35.कूद-कूद के तपय बजनिया,दूसर पावै  कइना = मेहनत का लाभ दूसरे को मिलना।

36.कऊआ कान ल लेगय कहे म ,ओखर पाछू नई दउड़े =अपवाहों पर ध्यान न देना। 

37.खाये ल मउहा ,बताये ल बतासा =दिखावा करना। 

38.खेलइया खोजय दांव त माछी खोजय घांव = मौके की तलाश। 

39.गॉव के जवई त रुख के चढ़ई = वापसी की अनिश्चितता। 

40. गुन के न जस के =कृतघ्न व्यक्ति। 

41.गाय न घोडू ,सुख सुतय हरु =निश्चिन्त जीवन जीना। 

42.घर गोसइया बोकरा खाय,अपजस ले के पहुना जाय =दूसरे को दोष देना। 

43.चलनी म दूध दुहय ,करम ल दोष देवय = भाग्य के सहारे रहना।

44.सियान बिना ,धियान नई होवय = प्रतिनिधित्व का आभाव। 

45.जम्मो कोलिहा हुंआ हुंआ ,त कोन चुप करावय = गुणवान का आभाव। 

46.ताते खाँव पहुना संग जांव =जल्दबाजी करना। 

47. जइसन -जइसन घर दुवार तइसन तेखर फ़इरका ,जइसन -जइसन दाई दद ओइसने ओखर लइका = परिवरिश के अनुसार गुण। 

48.दिन के साधु रात कन आघू =विपरीत आचरण। 

49.दू बेटा राम के कउड़ी  के न काम के = बेटों से सहारा न मिलना। 

50.धर ठेंगा उठ रेंगा = बिना रोक टोक जाना। 

51.न गॉव म घर न खार म खेत = बेसहारा। 

52.इत बेरा न तीत बेरा सतौरी धरौंव तेरा = समय बेसमय।

53.नवा बइला के चिक्कन सिंघ ,चल रे बइला टिन्गे टिंग =नई वस्तु में आकर्षण। 
        

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10 thoughts on “chhattisgarhi muhavare | lokoktiyan छत्तीसगढ़ी कहावतें”

  1. किसी समस्या से घिरने पर खुद के द्वारा किये गए गलत कार्यों का एहसास होना।

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