छत्तीसगढ़ी कहानी-चुरकी अउ भुरकी । chhattisgarhi kahani-churki au bhurki


हेलो फ्रेंड्स ,स्वागत है आपका हमारे वेबसाइट हमर गॉव डॉट कॉम पर ,आज हम आप लोगों के लिए छत्तीसगढ़ी में कहानी लेकर आएं हैं ,यह दो बहनों की कहानी हैं ,कहानी में बताया गया है कि किस प्रकार दोनों बहनों का व्यवहार एक दूसरे प्रतिकूल है। व्यवहार के अनुसार किस प्रकार उन्हें परिणाम मिलता है।

छत्तीसगढ़ी में’चुरकी अउ भुरकी’ की कहानी बहुत ही प्रसिद्ध है।इस कहानी में दो बहनों के व्यवहार को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया है।इस कहानी के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि यदि हम किसी भी व्यक्ति से गलत तरीके से व्यवहार करते हैं तो समय आने पर वह व्यक्ति भी हमसे उसी प्रकार का व्यवहार करता है।



                                                            चुरकी अउ भुरकी

एक गॉव म दु बहिनी रहयँ। एक के नाव चुरकी अउ दूसर के नाव रहय भुरकी।चुरकी बहुत गरीबीन रहय अउ भुरकी ह थोरकिन बढ़हर रहय।भुरकी बहुत घमंडी अउ ललचहीन रहय।

एक दिन के बात ए चुरकी के घर म खाय बर कुछू नई रहय। लईका मन भूख म रोवत रहयँ । चुरकी लइका मन के रोवई ल देख के मन म सोचथे ।काखर मेर दार-चाऊंर माँगव ,मइके जाथौं भईया मेर कुच्छु मांग के लाके लईका मन ल खवा हूँ।

 
चुरकी बेचारी मइके जाय बर घर ले निकल जथे, कुछ दुरिहा गे रथे तभेच रस्ता म एक ठन बोइर पेड़ रथे ।बोइर पेड़ ह चुरकी ल कहिथे, चुरकी तै मोर आजु बाजू ल खरहर बटोर देते।मइके ले लहुट खनी तोर बनी ल ले लेते।चुरकी बेचारी पेड़ के चरोकोति ल बहार बटोर देथे।

बाहरे बटोरे के बाद मइके डहर आघू बढ़ जथे, थोड़ेच दुरिहा गे रथे  तभेच एक ठन सुरहीन गईया मिल जथे ।सुरहीन गइया ह कहिथे चुरकी मोर गोबर कचरा ल बहार देते। मइके ले लहूटबे त तोर बनी ल ले लेबे।चुरकी गोबर ल बहार के साफ कर दिथे अउ आघू बढ़ जथे।

थोड़ेच दुरिहा गे रथे तभे जांता मिल जथे ।जांता कहिथे  चुरकी मोर चारो कोती ल लिप देते। लहुटबे त तोर बनी ल ले लेबे। चुरकी बेचारी जांता के तीर ल लिप देथे अउ मइके कोती आघू चल देथे।
कुछ दुरिहा गे रथे तभे एक ठन भिंभोरा म साँप ह बइठे रथे।सांप कहिथे ए चुरकी तै मोर भिंभोरा के तीर ल साफ कर देते। लहुटत खनी तोर बनी ल ले लेबे।चुरकी बेचारी बढ़िया साफ कर देथे अउ मइके चल देथे।


मइके म भउजी भईया मन रथे ।भउजी ह पानी देथे अउ बिहनिहा कन के बचे बोरे बासी ल खाय बर दे देेथे। बेचारी का करय कइसनों करके खाथे अउ भउजी ल कहिथे मोर लईका मन के खाय बर दार चाँउंर दे देते ।भउजी झल्ला के कहिथे कहां के ल देवंव।हमरे खाय बर कुछु नई ए।बेचारी चुप कन लहुट जथे ।


लहुटत लहुटत भउजी ल कहिथे भउजी एक ठन टुकनी दे देथे। भउजी ह टुकनी देथे त टुकनी ल धर के घर लहूट जथे
 रस्ता म भिंभोरा मेर पहुँचथे त सांप ह बइठे रहिथे। सांप ह चुरकी ल बहुत कन सोन चांदी देथे।चुरकी ह ओ ल धर के आघू बढ़ जथे । उँहा ले आघू बढ़थे त जांता मेर पहुंच जथे। जांता ह बहुत कन पिसान देथे।चुरकी ह पिसान ल धर के फेर घर कोती आघू बढ़ जथे। रसता म गाय मिलथे। गाय ह बहुत कन दूध दही देथे फेर ओ ल लेके चुरकी ह घर कोती बढ़ जथे।रसता म बोइर पेड़ परथे ,बोइर पेंड़ ह बहुत कन पक्का-पक्का, मीठ बोइर अउ बोइर के रोटी देथे। चुरकी के टुकना भर जथे। चुरकी टुकना ल बोहि के घर आ जथे।घर के आवत ले पसीना-पसीना हो जथे।

घर मेर पहुँचथे त दुरिहा ले अपन लईका मन ल चिल्लाथे,चुरकी के चिल्लाई ल सुन के भुरकी निकल जथे। भुरकी टुकना ल भरे देखथे त सोचथे अतका कन समान कहाँ ले लावत होही ओखर लालच बढ़ जथे।

अपन लईका मन ल पुछथे तोर मोसी कहां गे रहिस रे।लईका मन कहिथे मम घर गे रहिस ।एतका म भूरकी के मन म लालच आ जथे,अउ लइका मन ल गारी दे दे के जल्दी जल्दी खवाथे अउ मइके जाय बर निकल जथे।मन म सोचथे भइया ह चुरकी ल बहुत कन समान दे हे मैं जाहूं त महू ल देहि। फेर उहू ह मायके जाय बर निकल जथे।



जाते जात रस्ता म बोइर ,सुरहीन गईया, जांता अउ सांप मन कचरा ल बहारे बटोरे ल कहिथें त भुरकी अइठ के कहिथे, चल हट मैं मइके जाथौ ।तुंहर कचरा बाहरे बर थोरे आए हौं,कहिके अटिया के चल मइके चल देथे ।भईया के घर पहुँचथे त भउजी ह चुरकी ल सुनाइस तइसने भुरकी ल तको सुना देथे ।भुरकी मन ल छोटे करके लहुट जथे।रस्ता म जब भिंभोरा मेर पहुंचथे त बहुत कन सोन-चांदी ल देखके धरे ल करथे,जइसने सोन-चांदी ल धरे बर हाथ ल बढ़ाथे ओइसने ही साँप ह जोर से चाबे ल कूदाथे। भुरकी जान बचाके उँहा ले भागथे।

भागत भागत जांता में पहुँचथे अउ पिसान ल देख के लालच के मारे रुके नई सकय अउ पिसान ल उठाय बर करथे।पिसान ल जइसे उठाय ल करथे। जांता ह भुरकी ल मारे बर जोर से कुदाथे। उहां ले भागत भागत भुरकी ह सुरहीन गइया मेर पहुँच जथे।गइया मेर रखे दूध, दही ल धरे ल करथे ।गइया ह मारे ल जोर से दउड़ाथे ।भुरकी उहां ले जीव बचाके भागथे अंत म बोइर मेर पहुँचथे।पक्का पक्का बोइर ल देख के टोरे ल करथे बोइर के कांटा मन जोर से कोकमे बर दउड़ाथें भुरकी उहां ले जान बचा के भागथे फेर तहाँ ले घरे म आ के रुकथे।घर के पहुँचत ले पसीना म तरबतर हो गे रथे।

भुरकी ल अपन घमंडी स्वभाव के कारन कुछ नई मिलय।

 

इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे दूसरे  के प्रति रूखा व्यवहार और धन होने पर घमण्ड नही करना चाहिए। ज्यादा लालच भी हमारे लिए हानिकारक हो सकता है।


इस शिक्षाप्रद कहानी को शेयर करना न भूलें ।दोस्तों आप लोगों को ऐसे ही शिक्षाप्रद छत्तीसगढ़ी कहानी याद हो तो 
कमेंट बॉक्स के माध्यम से हमसे शेयर जरूर करना।

2 thoughts on “छत्तीसगढ़ी कहानी-चुरकी अउ भुरकी । chhattisgarhi kahani-churki au bhurki”

Leave a Comment