छत्तीसगढ़ विभिन्न विधाओं से सम्पन्न राज्य है यहां के जितने भी विधाएं है सभी बहुत ही प्राचीन है।इन सभी विधाओं में एक विधा है कहानी(किस्सा)।कहानी हमारे पूर्वजों द्वारा अपने नए पीढ़ी को मनोरंजन,सिख आदि के उद्देश्य से सुनाया जाता था।जब भी हम कहानी सुनते हैं हमें हमारा बचपन याद आ जाता है।
हमने कोशिश किया है कि इस कहानी को पढ़ने के बाद आपको भी आपका बचपन याद आ जाये।
हमने कोशिश किया है कि इस कहानी को पढ़ने के बाद आपको भी आपका बचपन याद आ जाये।
पोंगा पण्डित
एक गॉव म एक पंडित रहय । रोज बिहनिहा कन अपन घर के दुवारी म बइठे रहय अउ अवइया-जवईया मन ल जिद्द करके बइठार लेवय।रोज बइठइय्या मन ल किस्सा कहानी सुनावै। कुछ दिन म किस्सा- कहानी ल छोड़ के प्रवचन शुरू कर दिस।
पंडित रोज अपन घर के तीर म बने चबूतरा म बइठ के परवचन दै।धीरे धीरे ओखर परवचन सुने ल सब आस पास के मनखे मन आय लगीन अउ चढ़ोत्तरी तको चढ़ाय लगिन ।अब पंडित के आत्म विश्वास अउ बढ़ गे ।रोज परवचन म नवा नवा बात कहे ल धर लिस।
एक दिन पंडित के घर म मछरी चुरत रहय अउ पंडित ह चबूतरा म बढ़िहा परवचन कहत रहय ।पण्डितीन ह मन सोचिस आज साग ल रांधत रांधत महू ह परवचन सुन लेतेंव कहिके घर के दुवारी म बइठ के परवचन सुने लगिस।
एतका बात ल सुनिस त पंडित जोर से गुस्साइस अउ पण्डिताइन ल कहिथे हाथी के दु दांत होथे रे पगली ,एक खाय के अउ एक दिखाय के।अब के बाद धीयान रखबे।
पंडित रोज अपन घर के तीर म बने चबूतरा म बइठ के परवचन दै।धीरे धीरे ओखर परवचन सुने ल सब आस पास के मनखे मन आय लगीन अउ चढ़ोत्तरी तको चढ़ाय लगिन ।अब पंडित के आत्म विश्वास अउ बढ़ गे ।रोज परवचन म नवा नवा बात कहे ल धर लिस।
एक दिन पंडित के घर म मछरी चुरत रहय अउ पंडित ह चबूतरा म बढ़िहा परवचन कहत रहय ।पण्डितीन ह मन सोचिस आज साग ल रांधत रांधत महू ह परवचन सुन लेतेंव कहिके घर के दुवारी म बइठ के परवचन सुने लगिस।
पंडित जी के परवचन चलत रहै ।पंडित जी कहिथे मनखे मन ल कभू मांस मछरी नही खाना चाही ,जो मांस मछरी खाथे तेन ह राछस हो जाथे ….।
एतका बात ल सुनिस त पण्डितीन के हाथ पांव फूल गे। कराही सुध्धा साग ल धरिस अउ घुरवा म लेके दबा दिच।अउ घर म आके बइठ गे।
ओती पंडित जी जल्दी परवचन ल खतम करीस अउ घर आके पण्डिताइन ल कहिथे ।जल्दी कन भात दे ।पण्डिताइन जल्दी कन भात ल निकालिस ।पंडित जी बिना साग के भात ल देख के चिल्ला के कहिथे ।मछरी साग कहाँ हे जल्दी दे बहुत भूख लगत हे।पण्डिताइन कहिथे तहि तो ज्ञान देत रहे कि मांस मछरी नही खाना चाही । सुने हव त घुरूवा म फेंक के आ गेंव।
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि किसी को उपदेश देना सरल होता है और उस पर अमल करना मुश्किल होता है।कई पाखंडी लोग आपके भक्ति भावना से अपने स्वार्थ सिद्धि करते है।
दोस्तो आप लोगों को मजेदार छत्तीसगढ़ी कहानी(किस्सा) याद हो तो हमसे अवश्य शेयर करें।यह कहानी आपको कैसा लगा कमेंट बॉक्स में लिख कर हमें आवश्य बताएं। धन्यवाद
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बहुत बढ़िया कहानी,छत्तीसगढ़ी भाषा को पुष्ट करता हुआ
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Gajab he yaar jabartast
धन्यवाद 🙏🙏🙏