छत्तीसगढ़ी कहानी मिट्ठू अउ कोलिहा। cg kahani mitthu au koliha

आप मन बर ले के आए हन छत्तीसगढ़ी म किस्सा (कहानी)।आप मन खाली समय म मोबाइल म जरूर कुच्छु -कुच्छु पढ़त हो हु,त उही मोबाइल म बढ़िया  छात्तीसगढ़ी कहानी के मजा ले सकत हौ।कहानी ले पेरणा तको मिलथे।

ये कहानी ल आखरी के होवत ले पढ़हु तभे समझ म आही अउ अच्छा लगही।अच्छा लगही त शेयर तको कर देहु।त लेवा छत्तीसगढ़ी कहानी के मजा लेवा। 


                                                                     मिट्ठू अउ कोलिहा
 
बहुत पुराना बात ए।एक ठन मिट्ठू ह नदिया के तीर म जामें रुख के सोंडरा म रहय, कुछ दिन बीते के बाद उही रुख के तरी म एक कोलिहा ह आइस अउ छांव म बइठ के थिराय लगिस।मिट्ठू ह कोलिहा ल देख के पूछथे, कहाँ ले आवत हस बहुत थके- थके दिखत हस।कोलिहा ह कथे,जंगल म आगि लगिस हे त सब कुछ ल छोड़ के भागे ल पड़ीस हे।अब कहाँ जाहूं,कोनों पहिचान के नई ए।
 



छत्तीसगढ़ी कहानी-गुडुक।

कोलिहा के बात ल सुन के मिट्ठू ल दया आ जथे।मिट्ठू ह कथे,जादा चिंता मत कर मोरो कोनों नई हे।आज ले तैं अउ मैं दुनों संगी बन के रहिबो।कोलिहा मिट्ठू के बात ल मान जथे। अब बढ़िहा दुनों झन फेर संगी बन के रहे लगथें।


कुछ दिन बीतथे।अब कोलिहा ह उहाँ के रहइया बन जथे अउ अकड़ू जइसे ब्यौहार करे लगथे।एक दिन दुनों संगी म ठन जथे।मिट्ठू ह कोलिहा ह कथे ,आज सरत लगाथन तैं जइसे करे ल कहिबे मैं तोर बर ओइसने करहुं अउ मैं जइसे करे ल कइहौं तोला करे ल परही।तैं मोर एसो आराम के जुगाड़ कर मैं ह तोर बर जुगाड़ करहौं। मिट्ठू ह कोलिहा ल कथे महुँ तोर ले कम नई हौं।तोर सरत मंजूर हे।

कोलिहा मिट्ठू ल पूछथे,बता तोला का चाही?मिट्ठू ह कथे मोल पेट भर दाना खाना हे।कोलिहा मिट्ठू ल जुवाड़ के खेत म ले जथे अउ मिट्ठू ल ओखर पेट के भरत ले जुवाड़ ल खवा देथे ।कोलिहा मिट्ठू ल पूछथे अउ बता तोला का चाही?मिट्ठू कथे मोल अब कुछु नई चाही।

 छत्तीसगढ़ी कहानी-धोबी के कुकुर न घर के न घाट के।

अब मिट्ठू कोलिहा ल पूछथे, तैं बता तोला अब का-का चाही? कोलिहा ह मिट्ठू ल नीचा दिखाना चाहथे ।कोलिहा कथे,पहिली मोर खाए बर कूकरी ला।मिट्ठू कोनों कोती ले जुगाड़ करके कूकरी लाथे।


कोलिहा पेट भर खाए के बाद सो जथे।थोरिक देर बाद उठथे, फेर उठे के बाद मिट्ठू ल कथे, अब मोला हँसना हे, हँसा के बता? मिट्ठू ल कुछु समझ म नई आवय,कोलिहा ल हँसवाय के कोशिश करथे तभो ले ओला हंसी नई आवय।

उही मेर ले गुरू-अउ चेला दु झन जात रथें।चेला के कनिहा तक चुन्दी रथे अउ गुरु ह मुंडा रथे।मिट्ठू ह गुरु के मुड़ी म फड़फड़ाय लगथे। गुरु ह अपन चेला ल कथे चेला मिट्ठू ल एक चिमटा मार तो मोर मुड़ीच मुड़ी म उड़त हे।चेला ह मिट्ठू ल चिमटा म मारथे।मिट्ठू उड़ जथे।चिमटा ह गुरु के मुड़ी म भट ले परथे।गुरु ह मरगेंव करके मुड़ी ल धरके बइठ जथे।

कोलिहा जोर से हँस डरथे।मिट्ठू दु-तीन बार ओइसने करथे।चेला ह बार-बार गुरु के मुड़ी ल भट-भट मारथे अउ गुरु ह हर बार मुड़ी ल धर के बइठ जथे।कोलिहा जोर -जोर से हँसे लगथे।

कोलिहा ह मिट्ठू ल सकउ पाके परेशान करथे।कोलिहा ह कथे,अब मोला रोवा के देखा,मिट्ठू ल मउका मिल जथे।मिट्ठू कोलिहा ल एक गॉव के तीर म ले जथे अउ पूछथे,चल बता तुंहर सगा मन कइसे नरियाथें? कोलिहा सेखी मार के हुँवा……., हुँवा….. करे लगथे।गॉव के कुकुर मन कोलिहा के हुँवा…..हुँवा…..ल सुन के चाबे बर जोर से दउड़ाथें।कोलिहा ल एक कुकुर ह पकड़ लेथे अउ जोर से चाब देथे।कोलिहा दरद म रोय लगथे।

छत्तीसगढ़ी कहानी-पोंगा पण्डित।

कोलिहा थोरकन देर बाद मिट्ठू ल फेर कथे, अब मोला दूध पीना हे।मिट्ठू एक झन राउत के घर म ले के जाथे।घर म कोनों नई रहय। गाय के दूध दुह के रखाय रथे।कोलिहा ह गाय के दूध पी लेथे।अब कोलिहा ह टकरहा पड़ जथे। रोज राउत के घर म घुसर जय अउ दूध ल पी जाय।
 
एक दिन कोलिहा ह दूसर कोलिहा मन ल देख के कथे,कहाँ जाथौ केकरा खया हो ओकर बात ल सुन के दूसर कोलिहा मन कथें,त का तैं दुधे-दूध म खाथस।कोलिहा ह शान से कथे हौ मैं ह दुधे-दूध म खाथों।
 
दूसर कोलिहा मन कथें, हमू मन ल दूध के सुवाद चखा देते सगा, त कोलिहा ह कथे तुंहर बेटी के शादी मोर से करहु तब।दूसर कोलिहा मन दूध के लालच म हौ कहि देथें।कोलिहा ह रोज कसन राउत के घर म घुसर थे।ओला घुसरत खनी राउत ह देख लेथे।राउत ह कोलिहा ल डंडे-डंडा खूबेच मारथे।कोलिहा अधमरा हो जथे त छोड़थे।
 

कोलिहा घिसलत-घिसलत लहुट के आथे फेर ओला अपन गलती के एहसास होथे अउ मिट्ठू मेर माफी माँगथे।
 
“मोर किस्सा पुरगे दार, भात चुरगे खावव अउ काम म लग जावव।”


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ये कहानी(किस्सा) ले हमन ल ये शिक्षा मिलथे के कोनों ल जादा परसान नई करना चाही।काबर के जादा म कोलिहा कस भोगे ल पड़ जथे। चोरी करके कोई नई बच सकय।कबहु न कभू पकड़ाबे करथे।
 

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