भारत गांवों का देश है और इन गावों में रहने वाले हमारे पूर्वजों द्वारा मनोरंजन और विभिन्न देवी देवताओं को खुश करने के लिए कई प्रकार के नृत्य किया जाता था ,ये नृत्य पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा।
आज भी गांवो में इनमें से कुछ नृत्यों को मनोरंजन तो कुछ नृत्यों को अनुष्ठान आदि के नाम पर आयोजित किया जाता है।इन नृत्यों को लोक नृत्य कहा जाता है।
हमने कुछ chhattisgarhi लोक नृत्य के बारे में basic जानकारी आप लोगों से साझा किया है ।
1.सुआ नृत्य-
बीच मे मिट्टी का तोता चावल से भरे टोकरी में रखा जाता है साथ ही दिये जलाकर भी रखा जाता है
इस नृत्य को खरीफ के तैयार होने की ख़ुशी में घर घर जा जाकर किया जाता है।सुआ नृत्य छ. ग.के सभी क्षेत्र में किया जाता है।
सुवा गीत-
तरीहरी नाना मोर नाहरी नाना रे सुवा मोर ,
ए दे ना रे सुवा मोर तरीहरी ना मोरे ना ।
1.कोन सुवा बइठे मोर आमा के डारा म ,कोन सुवा उड़त हे अगास,ना रे सुवा मोर कोन सुवा उड़त हे अगास।2
हरियर सुवा बइठे मोर आमा के डारा म,पिवरा सुवा उड़त हे अगास, ना रे सुवा मोर पिवरा सुवा उड़त हे अगास।।2
ए अगास ए सुवा रे मोर,तरीहरी ना मोरे ना…
ए दे ना रे सुवा मोर ,तरीहरी ना मोरे ना।
2.कोन सुवा लावत हे मोर पिया के सन्देशिया,कोन सुवा करत हे मोर बाच, ना रे सुवा मोर कोन सुवा करत हे मोर बाच।2
हरियर सुवा लावत हे मोर पिया के सन्देशिया,पिवरा सुवा करत हे मोर बाच,ना रे सुवा मोर पिवरा सुवा करत हे मोर बाच।2
ए दे बाच ए सुवा रे मोर,तरिहरी ना मोरे ना….
ए दे ना रे सुवा रे मोर,तरिहरी ना मोरे ना।
3.कोन सुवा करत हे मोर रामे रमइया,को सुवा करत हे जोहार,ना रे सुवा मोर कोन सुवा करत हे जोहार।2
हरियर सुवा करत हे मोर रामे रमइया,पिवरा सुवा करत हे जोहार,ना रे सुवा मोर पिवरा सुवा करत हे जोहार।2
ए जोहारे रे सुवा रे मोर ,तरिहरी ना मोरे ना…
ए दे ना रे सुवा रे मोर, तरिहरी ना मोरे ना।
तरीहरी नाना मोर नाहरी नाना रे सुवा मोर ,
2.राउत नाचा-
यादव समुदाय के लोगों द्वारा यह नृत्य किया जाता है ।इस नृत्य में वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है । सभी एक ही प्रकार के वेषभूषा धारण किये रहते है। यह समूह में किये जाने वाला नृत्य है।समूह में दो या तीन व्यक्ति महिला का वेशभूषा धारण किये रहता है जिसे परी कहा जाता है।
यह कार्तिक नृत्यमाह के प्रबोधनी एकादशी से प्रारम्भ होता है। यह शौर्य नृत्य है।राउत नाच पुरुषों द्वारा किया जाता है।
दोहा-राम नगरिया राम के बसे गंगा के तीर हो।
तुलसी दास चन्दन घिसय तिलक लेत रघुबीर हो।।
पंथी नृत्य छ. ग.के सतनामी जाती के लोगो द्वारा किया जाने वाला नृत्य है ,पंथी नृत्य विश्व के सबसे अधिक ऊर्जा और तेज गति के किया जाने वाला नृत्य मन जाता है ।यह नृत्य दिसम्बर माह के 18 तारीख से शुरू होता है यह एक समूह नृत्य है। जिसमें वाद्य यंत्र बजाने वाले और नाचने वाले को मिलाकर 15 से 25 या अधिक सदस्य हो सकते हैं।यह नृत्य बाबा गुरु घासीदास के जन्म उत्सव के रूप में शुरू हुआ था।
पंथी नृत्य दो प्रकार का होता है –
2.खड़ी पार्टी-खड़ी पार्टी में वादक खड़े होकर नाचते हुए वाद्य यंत्रों को बजाते हैं।खड़ी पार्टी वाले में एक व्यक्ति नाचते हुए गाता है बाकी उसे दुहराते हुए नाचते हैं।खड़ी पार्टी में करतब दिखाया जाता है।
पंथी गीत-
तै तो हिरदे म सुमरले सतनाम , जाएके बेरा काम आहि न ।
एक झन साथी तोर घर कर नारी… घर कर नारी…,
मरे के बेरा ओह दूसरे बनाही… दूसरे बनाही…….।
घर कर नारी …घर कर नारी……,
दूसरे बनाही ….दूसरे बनाही…..
तै तो हिरदे म सुमरले सतनाम ,जाएके बेरा आहि न।
4.करमा नृत्य-
करमा नृत्य के साथ जो गाने गाए जाते हैं वह बड़ा ही मनमोहक होता है।यह मुख्य रूप से गोंड़ और बैगा जनजाति में ज्यादा प्रचलित है जिसमे कर्म देवता की आराधना किया जाता है।
करमा नृत्य के साथ गाए जाने वाले गीत-
करमा होवथे हमर पारा म ,करमा नाचे ल आबे ओ।
ददरिया नृत्य लोगो के मनोरंजन के लिए आयोजित किये जाते हैं ।इस मे एक गायक और एक गायिका होती है ।वादक और नृत्य करने वाले सभी को मिलाकर 30 से 40 तक की संख्या हो सकती है ।यह नृत्य प्रेम ,आकर्षण ,के भाव पर आधारित होता है ।
गीत- जहुरिया ल कै गोटी मारौं भाजी फूल,मोर चढ़ती जवानी के दिन वो जहुरिया ल कै गोटी मारौं।
महिलाएं आभूषण धारण किये रहती हैं साथ ही सभी एक ही रंग के वस्त्र धारण किये रहतीं हैं।पुरुष वाद्ययन्त्र के साथ सर पर गौर का सींघ धारण किये रहते है और गोलाकार रूप में नृत्य करते हैं।
गौर जानवर के सींघ धारण करने के कारण इस नृत्य का नाम गौर नृत्य पड़ा।
7 गेड़ी नृत्य-
इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ में और बहुत से लोक नृत्य है जैसे -गम्मत, लोरिक चंदा,चंदैनी-गोंदा, आदि ।हमने प्रयास किया है कि अधिकांश लोक नृत्यों के बारे में आपको एक साथ बेसिक जानकारी दे सकें,अलग अलग ढूंढना न पड़े।यदि आपको यह जानकरी उपयोगी लगा हो तो शेयर करना न भूलना।जय जोहर