छत्तीसगढ़ राज सबले अलग राज हे। इहाँ के रहइया मनखे मन अड़बड़ सिधवा होथें।पहुना मन इहाँ भगवान के रूप माने जाथें।जेन इहाँ आथे इंखरे हो के रही जथे।छत्तीसगढ़ी बोली-भाखा ह सब के मन ल मोह लेथे काबर के छत्तीसगढ़ी बोली ह सब बोली भाषा ले अलग हे।छत्तीसगढ़ी बोली म भाव बहुत झलकथे एखरे सेती छत्तीसगढ़ी ह सब झन ल रिझाथे।
छत्तीसगढ़ी बोली के भाव ल समझना हे त छत्तीसगढ़ी म कहानी (किस्सा) जरूर सुनौ काबर कहानी म ओ बोली-भाषा के जम्मो गुण ह झलकथे।आप मन जेन कहानी ल पढ़े बर सुरु करइया हौव ,ओ कहानी ह दू भाई के सोंच अउ पश्चाताप के कहानी ए ।
ये कहानी ल पढ़े बर शुरू करहु ओखर पहली मोर एक ही निवेदन हवय,के कहानी ल पूरा पढ़िहौ तभेच ये कहानी के संदेश ह समझ म आही। त लेवा छत्तीसगढ़ी कहानी-‘हिजगा’प्रस्तुत हे-
हिजगा
एक गॉव म दु भाई रहयं।दुनों भाई बढ़िहा मिलजुल के रहयं,काबर के उंखर दाई-दद नई रहय।कुछ दिन के बाद बड़े भाई के शादी जथे।अब भउजी-भइया अउ छोटे भाई तीनों झन बढ़िहा मिल के रहिथें ,फेर धीरे-धीरे भउजी ह हिजगा करे लगथे,अउ अपन पति ल तको अपन देवर बर भड़काय सगथे।
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रोज-रोज जंगल म मर-मर के लकड़ी काट के लाथस अउ तोर भाई ह खा-पी के घुमत रहिथे।रोज के कहई-कहई म बड़े भाई ल तको लगे लगथे के महि भर कमाथौं अउ ए ह खाथे अउ घूमथे।अब तो बड़े भाई ह छोटे भाई ल तको जंगल जाय ब कहे लगिस।छोटे भाई ह अपन भइया ल जंगल जाय बर मना कर देवय।
बाई के भड़कई अउ छोटे भाई के मना करई म बड़े भाई ल बहुत गुस्सा आ जथे अउ अपन छोटे भाई ल जान से मारे बर सोंच लेथे।
एक दिन बड़े भाई ह अपन छोटे भाई ल कथे, चल तो जंगल म थोर कन झिटी काटे हौं, तेला ले के आ जबे।छोटे भाई ह रोज मना करै तइसे ओहु दिन मना कर देथे।तभो ले बड़े भाई ह जिधिया के ले जथे अउ रसता म नरवा पड़थे तेमा ढकेल देथे,अउ मरगे होहय कहिके जंगल चल देथे ।जंगल ले लकड़ी ले के घर आ जथे।ओखर बाई पूछथे त जम्मो बात ल बता देथे।
ए कोति बड़े भाई के ढकेले के बाद छोटे भाई ह गीरत-गीरत नीचे खाई म आ जथे।कुछ देर के बाद जब होंस आथे त उठ के देखथे।कुछ दुरिहा म जंगल के जानवर मन के बइठक चलत रहिथे।
बइठक म शेर ह कथे मोर ए टँगीया ल देखत हौ ए अइसे टँगीया ए, जेमा पूरा जंगल ल उजाड़े जा सकत हे।ओतका म बेंदरा ह कहिथे ए पेंड़ ल तो देखौ एखर छाली ल कइसनो के घांव म लगाय ले मिनटो म ठीक हो जथे।बेंदरा ह अपन बात ल जइसे खतम करथे ।कोलिहा ह एक बीजा निकालथे अउ कथे, ए बीजा ल देखत हौ,ए बीजा ल बोंहौ त तीन ठन फर फरही। पहिली फर म खाय के रइही,दूसर म सोना-चांदी अउ तीसर फर म पानी रइही।
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लड़का ह उंखर सब बात ल धियान से सुनत रथे।सुने के बाद जइसे सब जीव पानी पिये बर नदिया म जाथैं,ओतका म ओ लड़का ह टँगीया म पेंड ल छोल के अपन घांव म लगा लेथे।सब ठीक हो जथे, फेर उही जंगल म छोटे कन कुटिया बनाके बीजा ल बों देथे।कुछ दिन के बाद ओमा तीन ठन फर लगथे।लड़का ह ओमा के सोना-चांदी ल बेचथे। खाय के अउ पानी वाले फर ल रख लेथे।
धीरे-धीरे लड़का ह बड़े आदमी बन जथे।जेन जघा म कुटिया रहय तेन ह आलीशान महल बना लेथे।नौकर-चाकर सब हो जथे।
एक दिन लड़का ह घर म भंडारा रखथे ।भंडारा म आस-पास के गॉव के आदमी मन खाय बर आय रथें।उंखर संग म ओखर भइया अउ भउजी तको आय रथें।लड़का ह अपन भइया अउ भउजी ल पहिचान जथे।दुनों ल उठा के अपन भीतर घर म बइठाथे।ए सब ल देख के ओखर भइया-भउजी मन पूंछथैं ,तैं कोन अच तलड़का ह बताथे के मैं तोर छोटे भाई आंव।
अपन भाई ल देख के ओखर भइया ह खूब रोथे अउ अपन करनी म बहुत पछताथें।बड़े भाई ह हाथ जोर के कथे,बाई के बात म आ के मैं पाप कर डरे रहेंव मोला माफी दे दे भाई।भउजी तको रो-रो के माफी माँगथे। छोटे भाई ह माफी दे देथे फेर सबोझन खुशी-खुशी जीवन बिताथें।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपने स्वार्थ के लिए बार-बार किसी का बुराई नही करना चाहिए क्योंकि बार-बार किसी का किसी से बुराई करने पर उस व्यक्ति के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न होने लगता है और कभी-कभी ऐसी घटना घट जाती है जैसा कभी भी नही होना चाहिए।
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अघाते सुग्घर काहनी👌👌छत्तीसगढ़ी भाखा के आनंद अउ इहाँ के लोककथा मन के गज्ज्ज्ज्ब के संकलन👌