छत्तीसगढ़ी कहानी-पतिव्रता। chhattisgarhi kahani-pativarta


छत्तीसगढ़ी कहानियाँ शिक्षाप्रद होती है,पर कुछ कहानियाँ भक्ति भाव को उजागर करने वाली भी होती है।जैसे कि रामायण,महाभारत आदि ग्रन्थों से पता चलता है कि सच्चे मन से भगवान का ध्यान करने से भगवान प्रगट हो जाता था और अपने भक्त की मुराद पूरी कर देता था।

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इस कहानी में भी जब बुढ़ीहा का लड़का नदी में बह जाता है तब उसकी पत्नी अपने पति को बचाने के लिए भगवान का ध्यान करती है और भगवान उसके पति को फिर से जीवित कर देता है।

प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ी कहानी-पतिव्रता ।


                                                                         पतिव्रता 


एक गॉव म एक झन बुढ़िहा रहिथे।बुढ़ीहा के एक बेटा रहिथे।बुढ़ीहा के बेटा ह बइला खरीदे अउ बेचे के काम करत रथे। बहुत दिन हो जथे जब बुढ़ीहा ह काम-बुता नई कर सकय त अपन बेटा ल कहिथे,बेटा अब काम बुता नई करे सकौं ग।नानकन रेहे तभे के तोर दद ह तोर शादी कर दे रहिस हे।जा के बहु ल लेवा लाते।

डोकरी के बेटा ह कहिथे, दाई मोर मन ह तो अभी बाई ल लाय बर नई होवत ए, कुछ दिन अउ कमा लेतेंव त जातेंव।फेर ओखर दाई ह जादा जिद्द करथे त ससुरार जाय बर तइयार हो जथे।



ससुरार के पता ल अपन दाई मेर पूछ के बाई ल लाए बर निकल जथे। दु-चार घण्टा के बाद म ससुरार गॉव पहुँच जथे। बुढ़ीहा के बेटा ल जोर के पियास लागत रहिथे त एक कुंआ मेर जाथे।कुंआ म बहुत झन पनिहारिन मन पानी भरत रहिथें।

बुढ़ीहा के बेटा पानी पिये बर माँगथे त एक झन लड़की ह ओला आँय बाँय सुना देथे।टुरी मन ल देख के आय हस ,पानी पिये ल थोरे आय हस अउ बहुत कुछ।

बेचारा ह पियास मरत-मरत ससुरार घर म पहुँचथे ।ओतका म ओखर बाई ह पानी धर के घर पहुँचथे अउ अपन दाई ल पूछथे,ए आए हे तेन ह कोन ए ओखर दाई ह कहिथे बेटी ये ह मोर दमांद ए अउ तोर पति ।अपन दाई के बात ल सुन के लड़की ह बहुत दुख मनाथे बिना जाने पहचाने अपने पति ल गलत-सलत बोल दे रहिथे।

बुढ़िहा के बेटा ह देखथे,कुँआ म जेन आँय बाँय बोले रहिथे तेन लड़की ओखर बाई ह ही रथे। बुढ़ीहा के बेटा जोर से गुस्साथे।

लड़की ह माफी माँगथे फेर लड़का के गुस्सा शांत नई होवय।जइसे-तइसे अपन बाई ल लेवा के ससुरार ले निकल जथे अउ रसता म अपन बाई ल बहुत मारथे।काबर कुँआ म सब के आघु म ओला बहुत सुनाय रथे।घर आथे त ओला नौकरानी जइसे रखथे।


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बहुत दिन बीत जथे।डोकरी के बेटा ह अपन बाई मेर बात तको नई करत रहिस,तभो ले बिचारी ह ससुरार म रहय,काबर के पतिव्रता रहिथे।पति के घर म जीना अउ मरना ।

एक दिन बुढ़ीहा के बेटा ह भइला बेचे ल जात रहिथे।जाते-जात रसता म रात हो जथे त नदिया के तीर म बइला मन ल बांध के सो जथे।रात के अचानक नदिया म बाढ़ आ जथे अउ बइला सुद्धा नदिया म बोहा जथे।


एती बर जब ओखर बाई ल पता चलथे त रोवत-रोवत नदिया के तीर म अउ भगवान के ध्यान करथे ।भगवान जब परगट हो जथे अउ कहिथे,जो मांगना हे मांग ले बेटी ।त बुढ़िया के बहु ह हाथ जोर के कहिथे,भगवान मोर पति नई मिलहि त महुँ नदिया म कूद के जान दे देहुँ।भगवान ओखर पति प्रेम ल देख के कथे जा ये अमरित ल धर ले।कुछ दुरिहा म बर पेड़ के जरी म तोर पति के लाश अटके हे।

बुढ़ीहा के बहु अमरित ल धर के जाथे अउ अपन पति के लाश ल निकाल के अमरित ल पियाथे।ओखर पति फेर जी जथे ।अपन बाई के मया ल देख के माफी माँगथे,फेर दुनों झन बढ़िहा जीवन बिताथें।



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             –  chhattisgarhi-kahani-guduk


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