Chhattisgarh में जो भी उक्ति या कहावतें कही जाती है उस कहावत के बनने के पीछे जरूर कोई सच्ची घटना होती है। हम ऐसे ही एक कहावत के बनने के पीछे की सच्ची घटना को कहानी के रूप में प्रस्तुत करने जा रहे हैं ,उस कहावत का नाम है –धोबी के कुकुर न घर के न घाट के।
एक बार के बात ए एक धोबी ह अपन घर म कुकुर पाले रहिथे ।ओ म एक कुकुर ह बहुत लालची रहिथे ओ लालची कुकुर ह अउ दूसर कुकुर मन के साथ म धोबी के घर म रथे अउ साथ म घुमथे ।
एक दिन गॉव म एक झन घर दशगात्र होवत रहिथे उहां बहुत झन आदमी आय रहिथे ।ओ घर वाले ह सब बर खाना पीना के व्यवस्था करे रहिथे ।सब के खाय पिये के बाद बचे भात ल एक जगह फेंक देथे।
सब कुकुर ओ बचे भात ल खाए बर जाथे।सबो खाय बर जइसे सुरु करथे लालची कुकुर ह कहिथे ।
चलव संगी हमर मालिक ह तको हमर खाय बर रखे होही उन्हां ले खा के आ जाथन ओखर बाद इंहा के भात ल खाबो।अइसे कहिके ओ ह घर चल देथे।
लेकिन दूसर कुकुर मन ह घर नई जायं अउ उहें बचे भात ल खा के पेट ल भर लेथे।
जेन कुकुर ह खाय बर घर जाथे ओखर घर के पहुँचत ले घर म रहईया दूसर कुकुर मन भात ल खा डरे रहिथें।घर पहुंच के जइसे खाय बर बर्तन ल देखथे सब बर्तन खाली होगे रहिथे उहां ओला खाय बर कुच्छु नई मिलय।
अब का करय उँहा ले भागत भागत फेर गॉव के दशगात्र वाले घर म पहुंचथे । ओखर आवत ले एती सब कुकुर मन खा के भात ल ख़तम कर दे रहिथे। इन्हां तको सब खतम हो गे रहिथे।
तब ले एला कहावत के रूप म बोले जाथे कि धोबी के कुकुर न घर के न घाट के।
जब कोनो आदमी लालच के चक्कर म हाथ आए मउका ल गवां देथे अउ जेखर उम्मीद रखथे उहू नई मिलय तब कहावत के रूप इही बात ल कहे जाथे कि ये आदमी के हालत तो धोबी कस कुकुर होगे न घर के होइच न घाट के।
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इस कहानी से में यह शिक्षा मिलती है कि हमे वर्तमान में जो कुछ भी मिल रहा है उसको उससे बेहतर मिलने की लालच में त्यागना नही चाहिए ।वर्तमान में जो मिल रहा है उसे स्विकार करते हुए भविष्य की संभावनाओ की आशा करना चाहिए।