छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है, जिसका गठन 1 नवम्बर सन 2000 को हुआ था,पर यहाँ की इतिहास बहुत ही प्राचीन है।छत्तीसगढ़ में गीत,नृत्य,खान-पान,रहन-सहन,वेशभूषा सभी में यहाँ के प्रचीन परम्परा की झलक स्पष्ट दिखाई देती हैं।
पिछले पोस्ट में हम यहाँ के लोक नृत्य के बारे में आपको जानकारी दिए थे।आप www.hamargaon.com पर जाकर लोक नृत्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
इस आर्टिकल में हम छत्तीसगढ़ के लोक खेलों के बारे में बताने वालें हैं।आप इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें।पढ़ने के बाद यदि आपके मन में कोई सवाल रहेगा तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में अपना सवाल या सुझाव जरूर लिखना ।
तो चलिए जानते हैं छत्तीसगढ़ के लोक खेल कौन-कौन से हैं और उसे कैसे खेला जाता है।
1.बित्ता कूद-
बित्ता कूद छत्तीसगढ़ के प्रचलित लोक खेलों में से एक प्रचलित खेल है।बित्ता कूद ऊंची कूद का ही रूप है।इस खेल को दो-दो की जोड़ी या सिंगल भी खेला जाता है।जब एक जोड़ी बैठकर पैर और बित्ते की मदद से ऊंचाई को बढ़ाते जाते हैं।बाकी जोड़ी बारी-बारी से उस ऊंचाई को कूदते हैं।यदि किसी का साथी कूद नही पाता या कूदते समय टच हो जाता है तब उसका साथी उसके बदले कूदता है।यदि उस ऊँचाई को पार कर लेते हैं तो अगला राउंड चलता है और यदि पार नही कर पाते तो उन्हें दाम देना पड़ता है।
2.डंडा कोलाल-
डंडा कोलाल गॉव के चरवाहा बच्चों का खेल है।इस खेल को कम से कम 3-10 तक की संख्या में खेला जा सकता है।इस खेल को खेलने के लिए निर्धारित स्थान में बारी बारी से झुककर अपने दोनों टांगों के बीच से अपने डंडे को ताकत लगाकर फेंकना पड़ता है।जिसका डंडा कम दूरी तक जाता है, उसे दाम देना होता है।
फिर हारने वाला अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर कर डंडे को हाथ मे रखता है बाकी लोग पीछे से उसके डंडे को अपने डंडे से फेकते फेकते दूर ले जाते हैं।डंडे को फेकते समय फेकने वालों को निर्धारित चीजे जैसे पत्ती, कंकड़,आदि छूना होता है। दाम देने वाला उन लोगों को छूने का प्रयास करता है। जो उसके डंडे को अपने डंडे से फेकते हैं।यदि फेकनें वाले निर्धारित वस्तु नही छू पाता और दाम देने वाला उसे छू लेता है तो फिर जिसको छूता है उसे दाम देना पड़ता है।
3.परी-पत्थर,अमरित-बिस,-
परी-पत्थर,अमरित-बिस ये दोनों खेल एक ही है इसमें कोई अंतर नही है।जिसको पारी देना होता है वह किसी को छूकर पत्थर या बिस बोलता है ऐसे स्थिति में पत्थर जैसे खड़ा रहना होता है जब उसके अन्य साथी परी या अमरित बोलकर छूते हैं तो वह फिर से इधर उधर भाग सकता है।यदि भगते हुए पड़ा गया तो दाम देना पड़ता है।
4.गिल्ली डंडा-
गिल्ली डंडा गॉव के बच्चों का पसंदीदा खेल है।इस खेल को सिंगल या जोड़ी, दोनों तरीके से खेला जाता है।इस खेल को खेलने के लिए लकड़ी का डंडा और लकड़ी का ही गिल्ली बना होता है। फिर एक बड़े गोले के अंदर से डंडे की सहायता से गिल्ली को मारा जाता है ।जिसकी गिल्ली सबसे कम दूरी जाता है, वह दाम देता है।हारने वाले को गिल्ली को फेककर गोले के अंदर डालना होता है।
इधर जितने वाला डंडे से गिल्ली को रोकता है। गोला में गिल्ली आने पर फिर खेल शुरू करना पड़ता है। गिल्ली गोले के अंदर नही आता तब तक जितने वाला बार-बार गिल्ली को मारकर दूर भेजता है पारी वाला फिर गिल्ली को गोले में डालने की कोशिश करता है।
5.गोटी (पचवा )-
इस खेल को ज्यादातर लड़कियाँ ही खेलती हैं।इस खेल को दो तरीके से खेला जाता है और बैठकर खेला जाता है।बहुत सारे कंकड़ को बिखेरकर बारी-बारी से बीनते हैं। सभी कंकड़ को एक एककर बिना जाता है और बीनते समय कोई दूसरा हिल गया तो जितना कंकड़ हिला रहेगा उतने को दूसरे को देना पड़ता है।दूसरे से हिला तो पहले वाले को देना पड़ता है।इस प्रकार ज्यादा कंकड़ जितने वाला जीत जाता है।हारने वाला जितने वाले को उसका उधार चुकाता है।
गोटी के दूसरे तरीके में पाँच गोटी के मदद से छर्रा,दुवा,तिया,चौउवा ,उद्दलकुल तक बिना जाता है।इस प्रकार 5-7राउंड तक खेल चलता है जो बिना गिराए उस राउंड तक जल्दी पहुंच जाता है वो जीत जाता है।
6.फल्ली-
इस खेल को पाँच लोग मिलकर खेलते हैं।बीच मे खपरैल का टुकड़ा रखा होता है जिसे बचाते हुए पारी वाला चारो तरफ को फल्ली बोलते हुए पूरा करता है। इस बीच में चारो खानों में खड़े खिलाड़ी उस खपरैल को चुराकर अपने अन्य तीन साथियों को बांटता है।यदि दाम देेने वाला उसे छू लेता है तो उसेे दाम देना पड़ता है।
7.नन्दी-पहाड़,अंधियारी-अंजोरी-
नन्दी पहाड़ का खेल सामूहिक खेल है इस खेल में जिनता अधिक संख्या में खिलाड़ी रहते हैं, उतना ज्यादा खेल का मजा आता है। इस खेल को खेलने के लिए ऊँचा और नीचा स्थान का होना जरूरी रहता है।नीचे वाला स्थान नदी और ऊपर वाला स्थान पहाड़ कहलाता है।पारी से पूछा जाता है,कि नन्दी लेबे या पहाड़ फिर पारी वाला नन्दी कहता है ,तो सभी को पहाड़ वाले स्थान पर जाना होता है।और पहाड़ बोलने पर नदी वाले स्थान पर जाना होता है।इस बीच जाते समय किसी को छू लेता है तो उसे दाम देना पड़ता है।
अंधियारी-अंजोरी के खेल को भी नन्दी-पहाड़ के खेल जैसे ही खेला जाता है।पर इसमें नंदी पहाड़ के स्थान पर अंधियारी या अंजोरी बोला जाता है।इस खेल में छाया और उजाला वाला स्थान होना जरूरी रहता है।इस लिए बच्चे इस खेल को दिन ढलने के बाद खेलते हैं।
8.ख़िलामार-
ख़िलामार खेल में एक कील को पारी वाले को छोड़कर सभी बारी बारी से मार मारकर जमीन में गड़ाते हैं और फिर सभी आसपास छिप जाते हैं।
पारी वाला कील को जमीन से निकालता हैं और सभी को ढूंढता है। जो पहला मिला होता है उसे दाम देना पड़ता है।यदि कोई नजरों से बचकर कील के पास बने गढ्ढे में थूक देता है तो पुनः उसे ही दाम देना होता है।
9.बाँटी-
कंचा को ही बाँटी कहा जाता है। बाँटी के खेल को कई तरीके से खेला जाता है।दस,बीस, तीस,…..सौ तक गिनकर एक दूसरे के बाँटी को मारते हैं।जिनका जिनका सौ जल्दी हुआ वे सभी जीत जाते हैं ,जिसका सौ नही हो पाता ओ हार जाता है। फिर कदम से नाप कर अपने बाँटी को दूर में रखता है सभी अपने बाँटी से उसके बाँटी के निशाना लगाते हैं |पड़ा तो फिर कदम से नाप कर बाँटी रखता है ,इस प्रकार खेल चलते रहता है।नही पड़ा तो पुनः खेल शुरू होता है फिर दस, बीस बोलकर एक दूसरे के बाँटी को निशाना लगाते हैं।
10.भौंरा-
भौंरा का खेल बच्चों का पसंदीदा खेल है हिंदी में इसे लट्टू कहा जाता है। इस खेल में लकड़ी के गोल टुकड़े में कील लगा होता जिसे रस्सी से लपेट कर फेंकते हैं जिससे भौंरा कील के सहारे गोल घूमने लगता है।इस खेल में एक दूसरे के घूमते भौरे को गिराना होता है।
11.बिल्लस-
बिल्लस के खेल को आंगन में बिछे पत्थरों पर खेला जाता है कभी-कभी जमीन में चौकोर चौकोर डिब्बा बनाकर भी खेलते हैं।इस खेल में घर(खाना) जितना होता है।
12.चांदनी-
चांदनी का खेल खेलने के लिए एक दाम देने वाला होता है और बाकी उसके कहे निर्देशों को पूरा करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हैं इस बीच में कोई उस एक्शन को नही कर पाता या उठ कर भागता है तो उसे छू देता है।अब उसे दाम देना होता है।इस खेल में पारी वाले से बोला जाता है ए चांदनी का लेबे? पारी देेने वाली बोलती है अग्गल बेली बग्गल छी सभी वैसे ही बोलते और एक्शन करते दूसरे स्थान तक जाते हैं।
छत्तीसगढ़ में इन सब खेलों के अतिरिक्त और बहुत सारे खेल हैं जैसे-भटकउला,तिरी पासा, चर्रा, राजा-रानी आदि।इन सभी पारम्परिक खेलों को लोग भूलते जा रहे हैं। समय रहते इन खेलों को बढ़ावा नही दिया गया तो हमारी संस्कृति को पहचान दिलाने वाले एक और गौरवशाली परम्परा का अंत हो जायेगा ।
>>छत्तीसगढ़ी लोक खेल व खेल गीत।
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Kitna mast h ye khel … Gajab na
धन्यवाद
Bahut hi sir sunder
धन्यवाद
Bahut Maza aata tha khelkar jii Karta h ab bhi khelun bahut bahut dhanyawaad sir ji un Dino ki yaad dilaai….
🙏🙏🙏🙏🙏🙏